प्रेम.. और... त्याग...
आजकल प्रेम शब्द को बड़े ही गलत अर्थ में लिया जाता है ... जबकि ये तो बहुत व्यापक शब्द है . ये एक eisa शब्द है, जो यदि मानव मन में बस जाय तो सारे समाज का कल्याण हो जाय और आज जो रंग भेद , आतंकवाद , और दुश्मनी जैसे शब्द हैं वो मानवता की डिक्शनरी से निकल ही जाये और हर कोई प्रेम की वजह से एकदूजे का मान रखे, और स्नेह से दूसरो के लिए जिए , स्वार्थ की भावना भी न हो और ये पृथ्वी स्वर्ग की तरह सुन्दर बन जाये. स्वर्ग की तरह सुन्दर ही क्यों अपितु ये कहना चहिये की धरती पर ही स्वर्ग बन जाये . ये एकतरफ हो गई प्रेम की बात अब दूजी रही त्याग की बात सो मै आप सबसे जानना चाहूंगी की त्याग और प्रेम एक दूजे के पर्याय हैं या फिर एकदूजे से अलग रखना चहिये इसे ... क्यूंकि मैंने अक्सर देखा है की प्रेम हमेशा त्याग की मांग करता ही है या फिर मांग न भी हो किन्तु जहाँ प्रेम है वहां लोग आपनो के लिए सब कुछ कुर्बान कर देते हैं ... अब आप सब अपनी अपनी राय देंगे क्या इस विषय
|