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Old 20-09-2014, 11:18 AM   #8
soni pushpa
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Default Re: प्रेम.. और... त्याग...

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Originally Posted by lavanya View Post
आपने सही कहा कि प्रेम एक व्यापक शब्द है , परन्तु आज जब भी प्रेम की बात हो तो सिर्फ स्त्री-पुरुष के बीच के प्रेम की ही चर्चा होती है , और वहीँ तक सीमित हो जाता है ये शब्द।
प्रेम किसी भी वस्तु से जीव से हो सकता है। प्रेम के अनेक रूप हैं।
त्याग भी प्रेम का ही रूप है , सबसे शुद्ध रूप। त्याग वहीँ होता है जहाँ प्रेम अपनी चरम सीमा पर हो। जहाँ प्रेम नहीं वहां त्याग नहीं होता वहां समझौता होता है। जैसे कि मुझे कोई चीज़ छोड़नी पड़ रही हो ना चाहते हुए भी , तो वो त्याग नहीं होगा। त्याग वहां होता है जहाँ व्यक्ति ख़ुशी से कोई चीज़ छोड़े। और किसी वस्तु के छूटने पर भी जब हमें दुःख न हो अपितु ख़ुशी हो तब वो त्याग बनता है। क्यूंकि ये ख़ुशी उस वस्तु के हमारे पास से चले जाने की नहीं बल्कि जिसके लिए हमने वो वास्तु छोड़ी उसके लिए कुछ भी कर सकने की होती है।
जी लावण्या जी , आज समाज में प्रेम शब्द का ये ही अर्थ लगाया जाता है .और इस शब्द की विशालता को कहीं गुम कर दिया है इसलिए ही मेरे मन में ये सवाल आया की क्यों न इस बारे में हम सब चर्चा करे ,आज जो इंसानी समाज के हालात है ., वो कही कही जानवरों से बदतर हैं और उसकी एक वजह ये ही है की हम अपने इंसानी प्रेम को भूलते जा रहे है और स्वार्थ ने प्रेम का स्थान ले लिया है . और इसी कुण्ठा की वजह से हमारे समाज में मानवताके साथ प्रेम की कमी आ गई है,

और आपने जो उदहारण दिया वो बिलकुल सही है ..प्रेम सिर्फ अपने परिवार तक या अपनो तक सीमित न होकर हरेक के लिए हो तो वसुधेइव कुटुम्बकम का सपना सच हो जय
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