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Originally Posted by lavanya
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बहुत खूब प्रेम का एक और रूप आपने बताया है लावण्या जी , सही कहा आपने ये इर्ष्या इन्सान को बर्बाद करती है क्यूंकि इर्ष्या खुद को पहले जलाती है , बाद में सामने वाले को और जब येइर्ष्या का भाव मन में आये वहां प्रेम के लिए कोई स्थान नही रहता... प्रेम अनंत है विशाल है व्यापक है और आपने जो उदहारण दिया कृष्ण और गोपियों के प्रेम का ,वो ही प्रेम की पराकाष्ठा है .खुद को भूल के दुसरे के लिए जीना दुसरे के लिए सोचना . ये गोपियों का सच्चा प्रेम था कृष्ण के लिए ..जिसे बदले में कुछ नही चहिये था और गोपियों के माध्यम से कृष्ण ने दुनिया को प्रेम की सिख दी की प्रेम में बदले में कुछ मांग नही अपितु ,सिर्फ त्याग होना चहिये . न की कुछ पाने की लालसा.