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Originally Posted by kuki
सोनी जी, आपने बहुत अच्छा विषय चुना है, प्रेम और त्याग। इन दोनों ही शब्दों में बहुत गहराई है ,जिसकी व्याख्या शब्दों में करना बहुत मुश्किल है। ये दोनों एक -दुसरे के पूरक हैं। कई बार हम लगाव को ही प्रेम समझ बैठते हैं. हमें लगता है हम जिसे प्रेम करते हैं हम उसे पा लें लेकिन वो किसी और से प्रेम करता है तो हमें ईर्ष्या होती है ,और जहाँ ईर्ष्या होती है वहां प्रेम कभी नहीं हो सकता। प्रेम वो होता है जहाँ हम सामने वाले की ख़ुशी में दिल से खुश होते हैं ,चाहे वो हमसे प्रेम करे या न करे। प्रेम का सबसे बड़ा आदर्श श्री कृष्ण और ब्रज की गोपियाँ हैं। श्री कृष्ण जब ब्रज को और गोपियों को छोड़ कर चले गए थे ,गोपियों को पता था श्री कृष्ण अब उन्हें नहीं मिलेंगे तब भी उनका प्रेम श्री कृष्ण के लिए कभी कम नहीं हुआ.hum जिससे प्रेम करते हैं वो चाहे हमारे पास रहे या दूर हमारा प्रेम कभी कम नहीं होता। एक बेटा चाहे कितना नालायक हो ,अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम में भी छोड़ दे तो भी माँ-बाप अपने बच्चे को आशीर्वाद ही देते हैं ,उनका प्रेम बच्चे के लिए कभी कम नहीं होता।
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सबसे पहले आपका स्वागत है इस चर्चा में आपना मंतव्य प्रगट करने के लिए kuki जी .. सही कहा आपने इन दो शब्दों की जितनी व्याख्या की जाय वो कम ही लगेगी पर kuki जी दुर्भाग्य की बात ये है की आज के स्वार्थ के ज़माने में इसकी व्यापक परिभाषा सिमित हो रही है क्यूंकि जेइसे की आपने यहाँ उदहारण दिया की माता पिता को बेटा वृध्धाश्रम में डाल दे पर माता पिता का प्रेम कम नही होता बेटे के लिए. मेरा इस दो शब्दों पर बहस करने का मंतव्य ही ये है की अगर हमे कही से प्रेम् मिलता है तो अगर हम उसे दोगुना करके दें तो कितना आनंद व्याप्त होगा सारी दुनिया में यदि बेटा माँ बाप को उतना ही चाहे जितना वो उसे चाहते है तो vridhadshram की जरुरत ही न पड़ेगी किसी बूढ़े माँ बाप को . इस तरह यदि प्रेम सबमे व्याप्त हो जय और इसकी व्यापकता बढती रहे तो देखिये समाज के कितने बड़े दुःख का अंत हो जाय न कोई बूढ़े माबाप अपने बुढ़ापे को कोसें ., बल्कि अपने पोते पोतियों के साथ खेलकर अपने जीवन के अंतिम चरण को ख़ुशी ख़ुशी पार कर ले .किन्तु आज प्रेम की कमी ने समाज में ओल्ड हाउस बना डाले हैं और जहा प्रेम की बूढी मूर्तियाँ खून के आंसू रोतीं है और हरपल उन बूढी आँखों में एक आस होती है की कभी तो हमारा बेटा आएगा और प्रेम से माँ या पापा कहके आपने घर वापस ले जायेगा किन्तु अफ़सोस आज प्रेम और त्याग का स्थान स्वार्थ ने ले लिया है इस वजह से माँ बाप रह तकते आपनी अंतिम सांसे वृध्धाश्रम में ही छोड़ देते हैं..
धन्यवाद kuki जी ...