Re: परमात्मा को धन्यवाद कहने में झिझक क्यों?
जैसी कि कम लोगों को जानकारी होगी कि वत्स, गाय के बछड़े को कहा जाता है। बछड़े का जब जन्म होता है तब उसके शरीर में तमाम प्रकार का मल-मूत्र लगा होने के बावजूद गाय चाट-चाट कर उसे साफ करती है। वैसे यदि गाय के भूसे में मूत्र की महक आ जाए तो वह भूसा नहीं खाती है। लेकिन अपने बछड़े को चाट-चाट कर साफ करने में उसे कोई दुर्गंध नहीं आती है।
वैसे ही जैसे कोई मां जब अपने नवजात का मल-मूत्र साफ करती है तो कभी भी नाक पर कपड़ा रखकर उसे साफ नहीं करती। वह घृणा किए बिना अपने बच्चे को इसलिए साफ करती है कि वह उससे प्रेम करती है। प्रेम का भाव ही इतना गहरा होता है। भगवान भी अपने भक्त से इससे ज्यादा प्रेम करते हैं इसलिए उन्हें भक्त-वत्सल भी कहा जाता है।
जैसे गाय अपने बछड़े से प्रेम करती उसी प्रकार भगवान अपने भक्त से प्रेम करते हैं। जैसा कि आप भी जानते हैं कि जब गाय अपने बछड़े को जन्म देती है तो ग्वाला उसके बछड़े को टोकरी में बैठाकर चरागाह से लेकर घर आता है और गाय अपने बछड़े के पीछे-पीछे दौड़ती चली आती है। ऐसे ही जहां-जहां भक्त जाएगा भगवान भी वहां-वहां उसके पीछे-पीछे चले आते हैं।
इस प्रकार हम जैसे-जैसे भगवान की कथाएं सुनेंगे तो हमें पता चलता जाएगा कि वह हमसे कितना प्रेम करते हैं। इस अनुभव में परिपक्व होने के साथ-साथ हम पाएंगे कि संसार में हमसे ऐसा प्रेम कोई नहीं करता है।
संसार में सब हमसे काम निकालना चाहते हैं। जब तक यह शरीर चलता है तब तक सब लोग हमसे प्रेम करते हैं। इसलिए ही संसार में बूढ़ा व्यक्ति लोगों को भार लगने लगता है। उसकी सेवा कोई नहीं करना चाहता क्योंकि वह अब काम नहीं कर पाता है। जिसने पूरी जिंदगी कमाकर तुम्हारे रहने के लिए घर बनाया और तुम्हें अपने पैरों पर खड़ा किया उसे ही बूढ़ा होने पर घर से बाहर बैठा दिया जाता है।
दुनिया में व्यवहार का व्यापार लगा हुआ है। जितना दोगे उतना लोगे। प्रेम संसार में खो गया है। जो प्रेम का आभास देता है वह मोह का एक रूप मात्र है।
(सार्वभौम दास)
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|