Re: छींटे और बौछार
आपकी सुंदर कविता पढ़ कर मुझे अपनी ही कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं, वही पेश कर रहा हूँ:
जब से देखा तुझे हमने बहारों को नहीं देखा.
ज़मीं के ख्व़ाब देखे हैं सितारों को नहीं देखा.
तमन्ना मौज की करते हैं तूफ़ान से मोहब्बत में,
हमें अरसा हुआ हमने किनारों को नहीं देखा.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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