Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘काहे मालिक, आज हमरा से छुआ जइभो। और मरला पर हमहीं काम दे हिओ’’ लेमुआ भी पी के फलाड था सो जबाब दे दिया। फिर सभी मुसहर टोली के लोगो ने उसे पकड़ कर एक अलग जगह पर ले गए। एक साथ पंगत में वे नहीं बैठ सकते। दलितो के साथ इस तरह का भेदभाव में मुझे खला। पर देखा कि जब भोज शुरू हो गया तो वहीं गोरेबाबू परोसने वालों को एक एक समान ध्यान से मुसहर टोली के लोगों की तरफ भेजबा रहे थे। भोज मे बच्चों की पत्तलों पर खास नजर होती है क्योंकि चाहे जो हो जाए वे भोज मे चोरी करेगें ही। भोज का अंतिम समय आ गया और इसकी सूचना बच्चों को दही परोसे जाने के बाद लग जाती है और वे साथ लाए लोटा में बुनिया और जलेबी भरना प्रारंभ कर देते है। यही परंपरा है। कोई इनको टोकता नहीं, अरे बुतरू है।
वहीं भोज खत्म होने के बाद लेमुआ डोम बाले-बच्चे जूठा पत्तल उठाने में भीड़ जाता है। बड़ी ही उत्साह से। जिस पत्तल पर मिठाई या बुनिया हो उसे देख उसके बांझे खिल जाते और नहीं होने पर चेहरा मुर्झा जाता। मुझसे रहा नहीं गया तो मैने पूछ लिया।
‘‘की हो लेमू कहे खिसिया रहली है।’’
‘‘की करीओ मालीक, पत्तला पर कुछ रहो है तो बाल बच्चा के कई दिन खाना मिलो है।’’
‘‘कैसे’’ मैने कौतुहलबश पूछ लिया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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