02-10-2014, 02:29 PM
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#39
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Re: प्रेम.. और... त्याग...
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Originally Posted by soni pushpa
हम फिल्मों,serialsकी और आगे निकल जायेंगे
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आप ही नहीं, सोनी पुष्पा जी.. फ़िल्म का सन्दर्भ देने पर प्रायः सभी लोग आप जैसी ही बात करते हैं. इसमें आपका कोई दोष नहीं. एक विख्यात लेखिका के कथनानुसार भी- ‘एक कुली का एक करोड़पति की पुत्री के प्रेम में पड़ना दिखाने वाली बोंलीवुड फ़िल्में या एक अमेरिकन पर्यटक द्वारा एक भारतीय गाँव में एक अशिक्षित किसान से विवाह करना जैसे टी.वी. कार्यक्रम मनोरंजन के लिए बने हैं, लेकिन कदाचित् एक सम्पूर्ण व्यावहारिक जीवन के लिए नहीं.’ किन्तु यही बात यदि आप बोंलीवुड वालों से पूछिए तो कहेंगे कि हम वही दिखाते हैं जो समाज की सच्चाई होती है। भट्ट कैम्प की फ़िल्मों जिस्म और जिस्म-2 की कहानी की मूल (principle) संधारणा (concept) है- ’कहानी के अन्त में कारण चाहे जो भी हो, कहानी की नायिका कहानी के नायक को जान से मार देती है।’ समाचारपत्रों में प्रकाशित एक समाचार का सार यह है- ’एक युवती ने अपने प्रेमी को पार्क में मिलने के लिए बुलाया और गोली मार कर उसकी हत्या करवा दी।’ देखा आपने? समाचारपत्रों में प्रकाशित यह समाचार और भट्ट कैम्प की फ़िल्मों जिस्म और जिस्म-2 की मूल संधारणा- दोनों एक ही है। इसलिए यह निर्विवाद (implicit) रूप से सिद्ध हुआ कि फ़िल्मों में जो कुछ दिखाया जाता है उसकी संरचना यद्यपि काल्पनिक घटनाक्रम के आधार पर होती है किन्तु उसकी मूल संधारणा में कहीं न कहीं वास्तविक जीवन की सच्चाई छिपी होती है। यही कारण है कि उपरोक्त लेखिका स्वयं भ्रमित होकर अपनी सफाई में आगे लिखती हैं- ‘फिर भी, हो सकता है कि मेरे विचार गलत हों और हो सकता है- सच्चा प्यार इन सभी विषमताओं से ऊपर हो किन्तु आप और आपकी प्रेमासक्ति के बीच की व्यापक असमानता को इंगित करती हुई कहीं न कहीं पार्श्व में बजने वाली खतरे की घण्टियों के बारे में अपने कानों को खुला रखने में मैं कोई हानि नहीं समझती। क्या आप?’
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