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Old 03-10-2014, 09:26 PM   #400
rajnish manga
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Default Re: छींटे और बौछार

इस सूत्र पर पोस्ट न. 400 भी भाई जय भारद्वाज जी की होनी चाहिए, यही सोच कर उनकी एक विशेष रचना जो उन्होंने दिसंबर 2012 में पोस्ट की थी, उद्धृत करना चाहता हूँ. आशा है सभी मित्रों को यह रचना दोबारा पढ़ कर दोगुना आनंद आयेगा:

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Originally Posted by jai_bhardwaj View Post
बन्धुओं, 24 वर्ष पूर्व 18 दिसंबर 1987 को रचित यह हिंदी ग़ज़ल आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत है। कृपया आनंद लें। हार्दिक धन्यवाद।


नीरव एकाकी हृदय भवन में आज आ गया कोई।
शुभ्र धवलतम पृष्ठ पे अपना चित्र बना गया कोई।।

अब तक मेरा जीवन था एक बंजर धरती जैसा
वारि भरा जलधर बनके,झड़ी लगा गया कोई ।।

पतझड़ का था चिर निवास मेरे मन उपवन में
बन आह्लादक आमोदक, ऋतुराज छा गया कोई ।।

विरह वेदना बहती रहती, मेरे मन-अन्तर में
हर्ष भरे गीतों के लेकिन आज गा गया कोई ।।

खंडहर जैसा पडा हुआ था मेरा मनः पटल
बहुरंगी सपनों को लाकर वहाँ सजा गया कोई ।।

शव-सदृश व प्रवाहहीन थी सभी उमंगें मेरी
नवजीवन की वर्षा करके उन्हें जगा गया कोई ।।

विवशता के बंधन में आँसू ही बहाए हैं
सुना सुना कर छंद हास्य के, आज हँसा गया कोई ।।

बिखर गयी थी आशाएं, अनंत रात की चादर में
नई सुबह की सुखद बात की आस दिला गया कोई ।।

इच्छाओं के शुष्क पुष्प थे दुःख के आँचल में
उन्हें दृष्टि स्पर्श मात्र से, पुनः खिला गया कोई ।।

पूर्ण विराम प्राप्ति की इच्छा थी 'जय' प्राण पथिक की
अति समीप उद्देश्य विन्दु को आज हटा गया कोई ।।

नीरव एकाकी हृदय भवन में आज आ गया कोई।
शुभ्र धवलतम पृष्ठ पे अपना चित्र बना गया कोई।।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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