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Originally Posted by rajnish manga
मेरे विचार से जहाँ हम कुछ अधिकारों से लैस किये गए हैं वहीँ हम पर कुछ कर्तव्यों की अनुपालना करना भी आवश्यक बना दिया गया है.
सबसे छोटी इकाई ‘घर’ से शुरू करें. हम देखते हैं कि घर में हर छोटे सदस्य का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने से बड़े सदस्य का (मन, वचन व कर्म से) आदर करे. बड़ों (जैसे माता-पिता) का कर्तव्य है कि छोटों की भावनात्मक व शारीरिक सुरक्षा का ध्यान रखें, पालन पोषण व शिक्षा की उचित व्यवस्था प्रदान करें, पड़ौस की बात करें तो हर पड़ौसी का यह कर्तव्य है कि वह दूसरे पड़ौसी का आदर करे और उसको नुक्सान न पहुंचाये. इस प्रकार हम देखते हैं कि एक व्यक्ति का कर्तव्य प्रकारांतर से दूसरे व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना ही है. अतः अधिकार और कर्तव्य वास्तव में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. लोकतंत्र की सबसे अच्छी बात यह मानी जाती है यहाँ हर व्यक्ति को उन्नति के समान अवसर हासिल हैं मगर शर्त यह है कि आपकी उन्नति से किसी अन्य व्यक्ति या तबके की उन्नति या विकास अवरुद्ध न हो अर्थात अपने अधिकार का उपयोग करते समय आपका कर्तव्य बनता है कि दूसरे व्यक्ति के अधिकार की भी रक्षा करें.
संविधान द्वारा हमें समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध प्रतिकार का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता, शिक्षा तथा संस्कृति का अधिकार, संवैधानिक उपचारों का अधिकार आदि अनेकों अधिकार दिये गए है. इसी प्रकार अनुच्छेद 51 (क) द्वारा नागरिकों के मौलिक कर्तव्य भी तय किये गए हैं जिनका पालन करना राज्य व समाज की बेहतरी के लिए आवश्यक है.
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बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय रजनीश जी , आपने विस्तार पूर्वक हमे अधिकार और कर्तव्यों के बारे में समझाया ... सच बहुत ही सही कहा आपने की हरेक इन्सान कहीं न कहीं इनसे जुड़ा है क्यूंकि जहा अधिकार मिलते हैं वह अपने आप हमरे भी कुछ कर्त्तव्य बन ही जाते है जिसे हमे निभाना चाहिए .