Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
इसी बीच फिर एकाएक वह मेरे सामने खड़ी थी। उसी तरह जैसे जिंदगी सामने आकर रास्ते का पता बता रही हो। जैसे जिंदगी ने मंजील का पता बता दिया हो पर मैं अब भी अनजान बना बैठा हूं।
‘‘केतना देर इंतजारा करा देलहीं।’’
‘‘इंतजार में भी तो मजा है और प्यार के परीक्षा भी।’’
उसने टका सा जबाब दिया। वह कुछ गंभीर थी। आम दिनो की चंचलता उसने कहीं रख दिया था शायद। उसने कोई श्रृंगार नहीं किया किया था। वहीं टू पीस और फ्राक। गांव की एक लड़की। सबकुछ के बावजूद उसका चेहरा अंधेरे में भी साहस से चमक रहा था। कुछ देर तक खामोशी छाई रही। तीन बजने को है। चल दिया। थैला बरगद की खोंधड़ से निकाला और निकल पड़ रास्ते पर, शायद कोई मंजिल मिल जाए। अजीब से जूनून के हवाले था सब कुछ। चला तो जा रहा था पर कहां जाना है नहीं सोंचा था। रास्तें भर सांेचता आ रहा था कि पीछे से कोई आए और हाथ पकड़ ले-कहां जा रहे हो। पर कोई नहीं आया।
चलते चलते बस स्टैंड पहुँच गया पर गाड़ियों के चलने की अभी कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही थी। शायद ज्यादा पहले आ गया था। पर बिना कुछ सोंचे समझे पटना की ओर जाने वाली सड़क पर पैदल ही चल दिया। जैसे प्रेम के साहस में पटना की दूरी भी कम ही हो। चलता रहा, चलता रहा। एक धंटा चलने के बाद किसी गांव से गुजरते हुए एक-आध बूढ़ा-बुजुर्ग मिल जाते।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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