Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by dr.shree vijay
हमने रोशन चिराग़ कर तो दिया, अब हवाओं की जिम्मेदारी है,
उम्र भर सर बुलंद रखता है, ये जो अंदाज़-ए-इन्क्सारी है...........
(मिर्ज़ा असदुल्लाह खां ग़ालिब)
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हज़ार तोड़ के आ जाऊं उससे रिश्ता 'वसीम'
मैं जानता हूँ वह जब चाहेगा, बुला लेगा
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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