Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by bindujain
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उससे रिश्ता 'वसीम'
मैं जानता हूँ वह जब चाहेगा, बुला लेगा
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ग़ज़लों के आंसू क्यों अब तक बहते हैं
मेरा उसका रिश्ता कब का टूट गया
पर्वत की बाहों में जोश अलग ही था
मैदानों में आ कर दरिया टूट गया
(तुफ़ैल चतुर्वेदी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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