जीवन की सीख: रजनीश मंगा
जीवन की सीख (Jiwan ki Seekh)
कथाकार: रजनीश मंगा / Rajnish Manga
गरमी के मौसम में छुट्टी का दिन था और दोपहर का समय. मैं घोड़े बेच कर आराम से सो रहा था कि अचानक मेरे सैलफोन की घंटी बजी और मैं सपनों की दुनिया से सीधा हकीक़त की जमीन पर आ गिरा. गिरते पड़ते मैं अपने सैल फोन तक पहुंचा. फोन किसी अपरिचित का था.
“हैलो,” मैं बोला.
“गुड आफ्टर नून, सर,” उधर से एक लड़की की आवाज़ आयी, “क्या आप गुडगाँव में प्लाट या फ्लैट खरीदने में इंट्रेस्टेड हैं?”
यह सुनते ही मेरा अजीब हाल हो गया और बहुत गुस्सा भी आया. मैं उस लड़की को बुरा-भला कुछ बोलने वाला ही था कि तभी मुझे कुछ याद आ गया और मेरा क्रोध शांत हो गया. फिर भी मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसे क्या उत्तर दूँ. “नो, थैंक यू मैडम” कह कर फोन बंद कर दिया.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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