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Originally Posted by arvind shah
तो मित्रों इन साधु—संतो द्वारा बताई मोटी—मोटी बातों के पिछे छुपी असल बात को हमारे मुल विषय क्रोध (गुस्सा)के बारे में जानते है !
सम्पूर्ण विश्व में ढेरों दर्शन प्रचलित है जिनमें से हरेक ने अपनी—अपनी तरह से क्रोध के बारे में व्यख्या की है । इनमें से एक जैन दर्शन के सपन्दर्भ में बात करूंगा !
जैन दर्शन में मोटे तौर पर इन चार को कषाय माना है —
क्रोध, मान, माया और लोभ !
इन सब का मुल स्त्रोत माना है — राग को !
राग का मतलब आसक्ती, लगाव, मोह आदि है !
दूनिया में आपको जहां कहीं भी क्रोध होता नज़र आये तो पक्का समझना कि इसके मुल में यही राग है !
राग यानि आसक्ती, लगाव, मोह आदि से अपेक्षा का जन्म होता है और जब अपेक्षा पुरी नहीं होती तो क्रोध का जन्म होता है ।
कैसे ..? इसका धरातलिय अध्ययन आगे करेंगे तब तक आप भी विचार किजिये !!!
क्रमश:...
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मित्रों अब मेरी कही बातों को समझने के लिए रजनिशजी द्वारा पोस्ट की गई पोस्ट संख्या 8 में दिये इन उदाहरणों को समझते है—
1. कुछ पियक्कड़ लोगो ने एक बच्चे से सिगरेट लाने के लिए कहा. बच्चे के इनकार करने पर उसे जान से मार दिया गया.
...... इस उदाहरण में पियक्कड लोगों की आसक्ति सीगरेट में थी और उसे प्रस्तुत करने की अपेक्षा बच्चे से थी ! जो पुरी नहीं हुई और गुस्सा आया !!
2. दिल्ली में कार पार्किंग को ले कर दो पडौसियों में झगड़ा हो गया. गुस्से में हथियार निकल आये जिसमें एक लड़के की जान चली गई.
इस उदाहरण में आसक्ति पार्कींग स्थान की थी और दोनों पार्टीयों को एक दूसरे से अपेक्षा थी की वो गाड़ी पार्क करेगा !!
इस उदाहरण में दूसरा कारण अपने ईगो की आसक्ति का भी हो सकता है !!
3. तिहाड़ जेल में एक कैदी ने दूसरे कैदी को टूथपेस्ट नहीं दी तो दूसरे ने पहले कैदी की हत्या कर दी.
इस उदाहरण में आसक्ति टूथपेस्ट की थी और अपेक्षा दूसरे कैदी द्वारा उसे प्रस्तुत करने की थी !!
4. पति पत्नी में झगड़ा हुआ तो पति ने क्रोध में आ कर बच्चों समेत पत्नी की हत्या कर दी और खुद को पुलिस के हवाले कर दिया.
ये उदाहरण थोड़ा लिक से हट कर है ! इसमें मुल कारण तो वही है पर ज्यादा कारण मानसिक विकृति है !!
क्रमश:...