Re: मुझे मत मारो :.........
[QUOTE=rajnish manga;540388][font=arial][size=3]पुष्पा सोनी जी और डॉ श्री विजय दोनों ने ही यहाँ अपने अपने सारगर्भित विचार हम सब से साझा किये जिससे हमें उन दोनों के दृष्टिकोण को जानने का अवसर प्राप्त हुआ. हमारे समाज में जहाँ अच्छाइयाँ दिखाई देती हैं, वहां बुराईयां भी कम नहीं हैं. आधुनिक स्त्री ने सृजनात्मक, व्यावसायिक, कार्मिक, आर्थिक या राजनैतिक क्षेत्र में आज जो मुकाम हासिल किया है वह अपने बूते पर हासिल किया है, इसे स्वीकार किया जाना चाहिए. सैंकड़ों साल तक हमारे ढकोसलाग्रस्त तथा पुरुष प्रधान समाज ने अनुसूचित जाति के लोगों और महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझा और कहा:
ढोल गँवार सूद्र पसु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी
आदरणीय रजनीश जी ,, बिलकुल सटीक बात कही आपने महिलाएं आज भी आपने हक़ के लिए संघर्ष कर रहीं हैं और फलस्वरूप उन्हें कुछ अंशों तक ही सफलता मिली है पूरी नही ...
जी आपने दोहे की बात कही है जो, उसपर कई प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं की राम के ज़माने में भी नारी सुखी नही थी ? जबकि ये दोहा तब लिखा गया था जब सागर ने राम की प्रर्थना को अनसुनी की और लक्षमण ने कहा था की ढोर गंवार शुद्र पशु नारी ताडन के है सब अधिकारी तब वहां स्त्री ने क्या दोष किया था ? क्या गुनाह था उसका ? फिर भी स्त्री के लिए इतनी बड़ी बात कह दी .जबकि समुद्र पुरुष स्वरुप में प्रकट हुआ था .ये कहानी हमने रामायण के प्रवचन देते संतो द्वारा ही सुनी है
रजनीश जी ..बहुत बहुत धन्यवाद
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