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Old 22-11-2014, 01:07 PM   #177
rajnish manga
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Default Re: उपन्यास: जीना मरना साथ साथ

यूं ही बैठे बैठे, या उंधते हुए सुबह हो गई। वार्ड का ताला खुला। फिर नित्यकर्म की बारी। बाहर लंबी कतार के बीच वहां भी मारा मारी और विभेद की लंबी लकीर। बाभन का शौचालय, शुदर का शौचालय। भोला। जेल की यह उंची दिवार सिर्फ आदमी को कैद करने के लिए नहीं बनते बल्कि इसमें आदमियत भी कैद हो जाती है, यह बात मेरी समझ में आ गई थी।

खैर जहां
, जिस हाल में मैं था वहां संपन्नता और सुख अस्पृह हो गई थी, वैसे ही जैसे मुर्दे के लिए हो। कोई भी चाह जिंदों के लिए होती है और मैं प्राण से बिछड़ कर मुर्दा था और मुर्दों के लिए स्पृह क्या ?
चंदन से जलाओं की आम की लकड़ी से!

न तो सुबह का एक मुठठी मिलने वाला चना और गुड़ लिया और न ही दोपहर का जली हुई रोटी और दाल खाया। देखने से ही उकाई आती थी। न तो किसी ने खाने के लिए कहा न ही भूख लगी। चाहरदीवारी से लग टूकूर टूकूर बाहर देखता रहा। दोपहर के खाने के पाली में किसी ने मुझे टोक दिया।

‘‘अरे बब्लू दा, तों यहां?’’


देखा तो मेरे गांव का ही एक लड़का था
, पंकज। हत्या के आरोप में बंदी। उम्र पन्द्रह से अठारह साल। कई मर्डर कर चुका है और अपने यहां इसकी धाक है। रंगदार की उपाधी है। हत्या या अपहरण करने वालों को लोग इसी नाम से जानते है-रंगदार।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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