Re: पेशावर एक्सप्रेस: कृशन चंदर
(पेशावर एक्सप्रेस)
जब तक सभ महाजरीन आपणी नफ़रत को आलूदा ना कर लीते मेरा आगे बड़ना दुशवार किआ नामुमकिन था, मेरी रूह मैं इतने घाउ थे और मेरे जिस्म का ज़रा ज़रा गंदे नापाक ख़ूनीओं के कहकहों से इस तर्हां रच गिआ था कि मुझे ग़ुसल की शदीद ज़रूरत महिसूस होई। लेकिन मुझे मलूम था कि इस सफ़र मैं कोई मुझे नहाने ना देगा। अंबाला स्टेशन पर रात के वकत मेरे इक फ़सट कलास के डबे मैं इक मुसलमान डिपटी कमिशनर और उस के बीवी बचे सवार होए। इस डिबे मैं इक सरदार साहिब और उन की बीवी भी थे, फ़ौजिओं के पहिरे मैं मुसलमान डिपटी कमिशनर को सवार कर दिआ गिआ और फ़ौजिओं को उन की जान व माल की सख़त ताकीद कर दी गई। रात के दो बजे मैं अंबाले से चली और दस मीळ आगे जा कर रोक दी गई। फ़रसट कलास का डबा अंदर से बंद था। इस लिए खिड़की के शीशे तोड़ कर लोग अंदर घुस गए और डिपटी कमिशनर और उस की बीवी और उस के छोटे छोटे बचों को कतल किया गिआ, डिपटी कमिशनर की इक नौजवान लड़की थी और बड़ी ख़ूबसूरत, वोह किसी कालज में पड़्हती थी। दो इक नौजवानों ने सोचा इसे बचा लीआ जाए।
>>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|