Re: पेशावर एक्सप्रेस: कृशन चंदर
(पेशावर एक्सप्रेस)
हरे हरे खेतों में ग़ुलाई करेंगे और उन के दिलों मैं मिहरो वफ़ा और आंखों मैं शरम और रूहों मैं औरत के लिए पिआर और मुहबत और इज़त का जज़बा होगा। मैं लकड़ी की इक बे जान गाड़ी हूं लेकिन फिर भी मैं चाहती हूं कि इस ख़ून और गोशत और नफ़रत के बोझ से मुझे ना लादा जाए। मैं कहित ज़दा इलाकों में अनाज ढोऊंगी। मैं कोइला और तेल और लोहा ले कर कारखानों में जाऊंगी मैं किसानों के लिए नए हल और नई खाद मुहईआ करूंगी। मैं आपणे डब्बों मैं किसानों और मज़दूरों को ख़ुशहाल टोलीआं लै कर जाऊंगी, और बाअसमत औरतों की मिठी निगाहें आपणे मरदों का दिल टटोल रही होंगी। और उन के आंचलों में नंन्हे मुने ख़ूबसूरत बचों के चिहरे कंवल के फूलों की तर्हां नज़र आएंगे और वोह इस मौत को नहीं बलकि आने वाळी ज़िंदगी को झुक कर सलाम करेंगे। जब ना कोई हिंदू होगा ना मुसलमान बलकि सभ मज़दूर होंगे और इनसान होंगे।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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