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Originally Posted by rajnish manga
आत्महत्या के आंकड़े तो चौंकाने वाले हैं ही, इससे भी अधिक कई बार ऐसी ऐसी वारदात सामने आती हैं जहाँ हमारी नज़र में आत्महत्या की वजह बड़ी कमजोर जान पड़ती है.
कुछ दिन पहले फरीदाबाद में स्कूल में पढ़ने वाले एक युवक ने सुबह morning assembly के बाद स्कूल के वाशरूम में जा कर अपने ऊपर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा ली. पेट्रोल से भरी शीशी वह अपने घर से ही लाया था. बह बुरी तरह जल गया था. अतः उसे पहले लोकल और बाद में दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया. अभी उसकी दशा गंभीर बताई जाती है.
जांच करने वाले अधिकारियों से बातचीत में उस युवक ने बताया कि उसे उसकी (संस्कृत) टीचर ने बुरी तरह डांटा था और अपने मम्मी पापा को बुला कर लाने के लिए कहा था. युवक अपनी माँ को इस बारे में नहीं बता सका था. दूसरी बात इससे भी अधिक चौकाने वाली है. युवक के बस्ते से पुलिस को एक हॉरर उपन्यास मिला जिसमें बहुत खतरनाक किरदार और उनके खूनी कारनामे बताये गए थे. समझा जाता है कि इस किताब को पढने से भी उस युवक के मन में नकारात्मक विचार घर कर गए थे.
मैं सोचता हूँ कि इस बारे में सभी स्तरों पर गहन चिंतन व विश्लेषण की ज़रुरत है.
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ohhh बहुत दुखद घटना है ये तो रजनीश जी ,, सच क्यूँ बच्चे ये नही समझते की जीवन कितना मूल्यवान है एइसे आत्महत्या करके जीवन ख़त्म करना ये कहाँ की होशियारी है/?माँ बाप bhai बहन की हालत क्या होगी वे ही जान सकते हे .
टीचर्स की सख्ती इतनी भी अच्छी नही की विद्यार्थी अपनी जान दे दे. और उपन्यास क्यूँ एइसे लिखे जाए जो बच्चो को मौत का रास्ता बताती है ज्ञानवर्धक उपन्यास लिखाकर भी peisa कमाया ज सकता हे...
सही कहा आपने आत्महत्या के ये आकडे चिंता विषय है .