Re: मुहावरों की कहानी
के पी सक्सेना
केपी ने बॉटनी में एमएससी किया था और वे लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज में लैक्चरार रहे। उन्होंने ग्रेजुएट क्लासेज़ के लिए बॉटनी विषय पर एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिखी हैं। वे इंडियन रेलवे की सर्विस के दौरान स्टेशन मास्टर भी रहे।
आकाशवाणी, दूरदर्शन और मंच के लिए लिखे गए 'बाप रे बाप' और 'गज फुट इंच' नाटकों के अलावा दूरदर्शन के लिए लिखा गया धारावाहिक 'बीबी नातियों वाली' विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
केपी का मुहावराना अंदाज़
अकसर उनकी रचनाएं व्यंग्य से शुरू होकर सीरियस मोड पर खत्म होती हैं। 'सखी रे मनभायो मदनलाल', 'पुराने माल के शौकीन' और 'बैंक लाकर' जैसी बहुचर्चित कविताएं इस बात की तसदीक करती हैं। उनकी कविताओं और नाटकों में गढ़े गए मुहावरे और संवाद लोगों की जुबान पर चढ़ गए। किसी के मरने पर 'बेचारे खर्च हो गये' का मुहावरा ख़ासा लोकप्रिय हुआ। इसके अलावा 'बहुत अच्छे', 'लपझप' और 'जीते रहिये' जैसे संवाद खूब इस्तेमाल किए जाने लगे। अकसर केपी अपनी लेखनी में नये-नये मुहावरे खुद गढ़ते थे। जैसे स्वदेश फिल्म का एक संवाद - 'अपने ही पानी में पिघलना बर्फ का मुकद्दर होता है'। इसके अलावा इसी फिल्म में कुंवारे चरित्र के लिए कहा गया था - 'भइयाए कब तक चारपार्इ के दोनों तरफ से उठते रहोगे'। उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी उनकी जिंदादिली कायम रही। बुढ़ापे पर उनका नजरिया था - 'बुढ़ापे में जवानी से भी ज्यादा जोश होता है, भड़कता है चिराग-ए-सहरी, जब ख़ामोश होता है'।
जीभ के कैंसर ने छीने स्वर
केपी को जीभ के कैंसर का पता पिछले साल चला। उनका दो बार सर्जरी हो चुकी है। पहली बार जुलाई 2012 में और दूसरी बार मार्च 2013 में। पिछले महीने ही उनकी जीभ में फिर से ग्रोथ का पता चला।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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