Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
श्लोक 2 :
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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