कहानी: मैं एक मजदूर हूँ
कहानी: मैं एक मजदूर हूँ
(इन्टरनेट से)
प्रस्तुति रामाधार
“करीब इक्कीस साल पहले मैं और मेरा छोटा भाई मोहन पहली बार दिल्ली आये थे। जिनके यहाँ हम ठहरे थे वह गाँव के नाते से हमारे चाचाजी थे। दो दिन तक तलाशने पर भी जब काम नहीं मिला, तो चाचाजी ने हमें कमरे से निकाल दिया। कहा, ‘जहाँ चाहे जाओ… यहाँ रहना है, तो कमरे का किराया और राशन का खर्च देना होगा।’ हमारे पास पैसा नहीं था। मोहन ने कहा, ‘मोती नगर चलते हैं, वहाँ पर गाँव के लोग रहते हैं। वहाँ जरूर कोई रास्ता निकलेगा।’ हमारे पास सिर्फ़ बीस रुपये थे जिसमें से 10 रुपया किराए पर खर्च हो गये।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 14-12-2014 at 04:23 PM.
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