Re: निर्दलीय श्वान-प्रेम
सूत्र-लेखक स्वयं दूर से इन निर्दलीय श्वानों अथवा इनके पुत्र-पुत्रियों को बिस्कुट बाँटकर अपना श्वान-प्रेम प्रकट करते रहते हैं। वह दिन दूर नहीं जब सूत्र-लेखक के पीछे सम्पूर्ण शहर के दस हज़ार कुत्ते होंगे और जहाँ-जहाँ सूत्र-लेखक भ्रमण करेंगे वहाँ-वहाँ उनके पीछे तमाम निर्दलीय श्वान दुम हिलाते हुए पीछे लग जाएँगे। सूत्र-लेखक के अनुभव के अनुसार इन निर्दलीय श्वानों को खिलाना-पिलाना कभी व्यर्थ नहीं जाता। यदि आप इन निर्दलीय श्वानों को नियमित रूप से खिलाते-पिलाते हैं तो ये निर्दलीय श्वान आपको कभी नहीं काटेंगे। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप जिन श्वानों को खिलाते-पिलाते हैं सिर्फ़ वे श्वान ही आपके परिचित होने के कारण आपको नहीं काटेंगे। आप देश के किसी भी हिस्से में इन निर्दलीय श्वानों को खिलाइए-पिलाइए और आपको इसका फल ‘रोमिंग बेसिस’ पर सर्वत्र मिलेगा। सूत्र-लेखक के एक व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार उन्होंने देश के एक भाग में इन निर्दलीय श्वानों को खिलाया-पिलाया जिसके कारण चमत्कारिक ढंग से देश के दूसरे भाग के निर्दलीय श्वान बिना खिलाए-पिलाए ही इन्हें देखकर अपनी दुम हिलाने लगते हैं और इनके आगे-पीछे मँडराते हैं। शायद ये निर्दलीय श्वान अपनी विशेष अतीन्द्रिय शक्ति द्वारा अपने हितैषियों की पहिचान कर लेते हैं। इस सम्बन्ध में और अधिक शोध की आवश्यकता है।
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