Movie Review: 'पीके'
Plot: 2014 की शुरुआत से ही हम बॉलीवुड की बेसिर पैर की मसाला फिल्में देखकर ऊब गए हैं।
सौ-करोड़, दो सौ करोड़ और न जानें कितने करोड़ों के पीछे बॉलीवुड भागता रहा मगर आमिर खान और राजकुमार हिरानी चुपचाप 'पीके' बनाने में लगे रहे। दोनों ने समय-समय पर फिल्म को लेकर उत्सुकता पैदा करनी शुरू की। इससे हर दर्शक के मन में यह उम्मीद जाग गई कि कहीं कहीं न साल का अंत एक अच्छी फिल्म देखकर होगा। हिरानी और आमिर इस भरोसे पर खरे उतरे और सोशल मैसेज और एंटरटेनमेंट से भरपूर फिल्म बनाई। फिल्म समाज में फैले धर्म के ठेकेदारों पर प्रहार करती है।
फिल्म में पीके बताता है कि कैसे समाज में दो तरह के भगवान हो चुके हैं। एक जिसने इंसान को बनाया उसे कोई नहीं पूछता और दूसरे वह भगवान हैं जो धर्म के ठेकेदारों, ढोंगी, पाखंडी बाबाओं ने बनाए हैं। उन्हें जाति-धर्म के अनुसार बांट दिया है और उनके नाम पर लोगों को डराकर बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा है।
कैसी है कहानी:
फिल्म देखने से पहले हर किसी के मन में यही सवाल था कि पीके क्या है? दरअसल पीके एक एलियन है जो दूसरे गृह से धरती पर जीवन को लेकर रिसर्च करने आता है। धरती पर उतरते ही उसके स्पेसशिप का वो यंत्र एक चोर चुराकर भाग जाता है जिससे वह अपने गृह पर वापस जाने का सिग्नल स्पेसशिप को भेज सकता है। अब पीके तब तक वापस नहीं लौट सकता जब तक उसे वो यंत्र नहीं मिल जाता। बस इसी यंत्र की खोज में वह दिल्ली पहुंच जाता है। उसका कोई नाम नहीं है मगर उसके अटपटे सवालों से लोग अपना सिर पकड़ लेते हैं और उससे पूछते हैं: पीके है क्या (यहीं से उसे नाम मिलता है पीके)। एक दिन उससे मिलती है जगत जननी जो कि एक टीवी रिपोर्टर है और उसे एक धांसू टीआरपी स्टोरी की तलाश है। वह पीके की कहानी सुनती है मगर उसे लगता है कि वह फेंक रहा है। एक दिन उसे यकीन होता है कि पीके सच्चा है और वह उससे वादा करती है कि वह उसे उसका वह यंत्र ढूंढ कर ही दम लेगी। दूसरी तरफ फिल्म में पाखंडी बाबा तपस्वी (सौरभ शुक्ला) और टीवी चैनल के हेड बोमन ईरानी भी हैं।कैसे पीके से इन सबकी कड़ियां जुड़ती हैं और फिर कैसे पीके पाखंडी बाबा (सौरभ शुक्ला) के जरिए समाज में फैले धर्म के नाम पर पाखंड से तर्कों के बल पर पर्दा उठाता है, यह देखने लायक है।
एक्टिंग: 'पीके' के रोल में आमिर एकदम यूनिक और ब्रांड न्यू अवतार में हैं। उन्हें ऐसे रूप में देखने की कल्पना शायद किसी ने नहीं की होगी। सतरंगी कपड़े, मुंह में पान, होठों पर लिपस्टिक और सबसे मजेदार उनकी भोजपुरी बोली। आमिर पीके के किरदार में एकदम उतर गए हैं। यही वजह है कि आप किसी भी एज ग्रुप के हों पीके से आसानी से कनेक्ट हो जाते हैं और उसकी मासूमियत में खोने से खुद को रोक नहीं पाते। वहीं, अनुष्का ने भी जग्गू के रोल को बखूबी प्ले किया है। बेशक वह लुक्स के मामले में अपनी पिछली फिल्मों से बिल्कुल अलग नजर आई हैं लेकिन अपने रोल के हिसाब से उन्होंने बढ़िया एक्टिंग की है। सौरभ शुक्ला, सुशांत सिंह राजपूत और बोमन ईरानी और संजय दत्त का अभिनय ठीक-ठाक है।
निर्देशन: राजकुमार हिरानी ने फिल्म बनाने में चार साल क्यों लगाए, यह आप फिल्म देखकर समझ सकते हैं। उन्होंने फिल्म की हर छोटी से छोटी चीज़ पर काफी रिसर्च की है। कहानी पर उनकी पकड इतनी मजबूत है कि आप फिल्म से अपना ध्यान नहीं हटा पाते। फिल्म की कहानी थोड़ी सी 'ओह माय गॉड' से मेल खाती है मगर कॉन्सेप्ट और ट्रीटमेंट बिल्कुल राजकुमार हिरानी की स्टाइल में है।
क्यों देखें: आमिर की जबरदस्त एक्टिंग, बढ़िया स्क्रिप्ट, राजकुमार हिरानी का डायरेक्शन और फैमिली एंटरटेनिंग है। इसके अलावा इंट्रेस्टिंग तरीके से सेंसिटिव इश्यू को उठाया गया गया है जिससे आपको यह नहीं लगता कि फिल्म में बेवजह का ज्ञान दिया गया है। इन्हीं कुछ वजह से फिल्म को जरूर देखना चाहिए।
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