Re: मुहावरों की कहानी
कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर
“हाँ, पिता जी.” कुछ देर बाद वे दोनों बातें करते करते घर आ पहुंचे.
कुछ दिनों बाद किसी काम से पिता पुत्र को गाँव से बाहर जाना पड़ा. रास्ते में नदी पडती थी. उसे आर करने के लिए उन्हें नाव पर सवार होना पड़ा.
काम खत्म होने के बाद वे फिर से नदी के किनारे आ पहुंचे और नाँव का इंतज़ार करने लगे. नाँव आने पर वे उस पर सवार हुए और नदी के दूसरे किनारे की ओर जाने लगे. जब उनकी नाव नदी के बीचोबीच पहुंची, तो बालक सामने से आती हुई एक अन्य नाव को देख कर चकित हो कर बोला,
“पिता जी .... वो देखो, सामने से बड़ी नाव आ रही है...”
नाव जब उनके नज़दीक आयी तो कुछ देख कर पुत्र को उस दिन की घटना याद आ गयी. वह बोला, “पिता जी, उस दिन तो गाड़ी के उपर नाव थी लेकिन देखो, आज नाव में गाड़ी है.”
पिता भी उसी दिशा में देख रहे थे. उन्होंने देखा कि नाव पर यात्रियों के साथ साथ एक (बैल) गाड़ी भी सवार थी जिसे दूसरी ओर दूसरे किनारे पर जाना था. पिता ने पुत्र की शंका का समाधान करते हुए कहा, “बेटा, मैंने तुम्हें उस दिन भी बताया था कि नाव पानी पर चलती है, इसलिए सड़क का मार्ग इसे गाड़ी पर तय करना पड़ता है और गाड़ी सड़क का वाहन है और पानी पर नहीं चल सकती, इसलिए नदी का रास्ता इसे नाव पर तय करना पड़ता है. यह तो समय समय की बात है, बेटा. उस दिन नाव गाड़ी पर सवार थी और आज गाड़ी नाव पर सवार है.”
नाव में और लोग भी बैठे हुये इन पिता-पुत्र का वार्तालाप सुन रहे थे. उन लोगों में से एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा, “यह तो भाइयो, ऐसे समझ लो कि- कभी नाव गाड़ी पर तो कभी गाड़ी नाव पर.” तभी से यह मुहावरा हमें यदा-कदा सुनाई दे जाता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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