Re: इधर-उधर से
अली सरदार जाफ़री
सरदार साहब ने अपने नौकरों को कभी किसी गलती के लिए कोई सजा नहीं दी. एक बार उनकी बीवी के सोने के झुमके घर से गायब हो गए. कुछ दिन बाद इस बात का पता लगा. उनकी बीवी को एक नौकर पर शक़ था. सरदार साहब ने नौकर को अलग ले जा कर बात की. नौकर ने अपना कसूर मान लिया और रोने लगा. यह पूछने पर कि उसने ऐसा क्यों किया तो उसने बताया कि ‘मेरी बीवी कई दिनों से उसके पीछे पड़ी थी कि मुझे सोने के झुमके लाकर दो. मेरे पार इतने पैसे नहीं थे कि मैं इन्हें खरीद सकता. इसलिए मैंने यह झुमके उठा लिए. घर के कुछ लोग उसे पुलिस में देने की बात करने लगे. लेकिन सरदार साहब ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया. सिर्फ उसको अच्छी तरह समझा कर और ताकीद करने के बाद उसे छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि “आदमी मजबूरी में ही ऐसा काम करता है”.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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