01-01-2015, 09:52 PM
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
[QUOTE=rajnish manga;545122] खलील जिब्रान/बोध कथा- गुलामी
बिल्ली ने कहा, ‘‘किसी के लिए जो अपशकुन होता है, वही दूसरे के लिए शुभ संकेत होता है।’’
दूसरा दास बोला, ‘‘अगर अभी ये जाग जाए और अपना गिरा हुआ मुकुट देख ले तो? निश्चित रूप से हमें कत्ल करवा देगी।’’
बिल्ली घुरघुराई, ‘‘जब से तुम पैदा हुए वो वह तुम्हें कत्ल करवाती आ रही है और तुम्हें पता ही नही।’’
तीसरे दास ने कहा, ‘‘हाँ, वह हमें कत्ल करवा देगी और फिर इसे ‘ईश्वर के लिए बलिदान’ का नाम देगी।’’
बिल्ली की घुरघुराहट, ‘‘केवल कमजोर लोगों की ही बलि चढ़ायी जाती है।’’
चौथे दास ने सबको चुप कराया और फिर सावधानी से मुकुट उठाकर वापस रानी के सिर पर रख दिया। उसने इस बात का ध्यान रखा कि कहीं रानी जाग न जाए।
बिल्ली ने घुरघुराहट में कहा, ‘‘एक गुलाम ही गिरा हुआ मुकुट वापस रखता है।’’
थोड़ी देर बाद रानी जाग गई। उसने जमुहाई लेते हुए चारों तरफ देखा, फिर बोली, ‘‘लगता है मैं सपना देख रही थी। एक अत्यद्दिक प्राचीन ओक का पेड़...उसके चारों और भागते चार कीड़े..उनका पीछा करता एक बिच्छु! मुझे तो यह सपना अच्छा नहीं लगा।’’
यह कहकर उसने फिर आँखें बन्द कर लीं और खर्राटे लेने लगी। चारों दास फिर पंखों से हवा करने लगे।
बिल्ली घुरघुराई और बोली, ‘‘हवा करते रहो...पंखा झलते रहो! मूर्खो!! तुम आग को हवा देते रहो ताकि वह तुम्हें जलाकर राख कर दे।’’
किसी ने लिखा भी है क़ि--------
''पिजड़ा हो सोने का फिर भी,
भली नहीं है कभी गुलामी''
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 01-01-2015 at 09:54 PM.
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