Re: कहानी: सखी
कहानी: सखी
घरे त फूटल कउड़ी ना रहे, कहाँ से आइत पचास हजार! बड़ी घावला के बाद नेउरसेठ बियाज पर रूपया देबे के तइयार हो गइलन। शंकर के चीर-फार, दवा-दारू भइल, कुछ दिन में ऊ त ठीक हो गइलन। बाकिर पचास हजार के करजा कवनो रोग से कम तना रहे। खेदारू बेचारू का करतें! किरिया खा लिहलन कि " जबले हम करजा नाचुकाइब अपना मेहरारू से देहिं ना छुआइब।"
खेदारू कमाये दिल्ली जात रहलन, उनकर मेहरारू बहुते उदास रहली। करिया बादरघेरले होखे, धान पानी बिन सूखत होखे, आन्ही आवे आ बादर उधिआ जा, बुनियो नापरे त डरेरा पर आस में बइठल किसान के जइसल बुझाला, कुछ अइसने बुझाईल फूलाके। उनकी अँखियन से लोर झरे लागल।
खेदारू के जाते फूला के रोज ताना मिले लागल। "ये कुलच्छनी के आवते घर भिलागइल। ई मरियो जाइत त करेजा जुड़ाइत।" अउरियो का जाने कवन कवन ताना सुत-उठके मिले, बाकि फूला ये कान से सुनस आ ओ कान से निकाल देस। कबो हिया में नाजोगावस कवनो बाति।
खेदारू वैल्डिंग के काम सीख लीहले रहलन।
महीना में दस-एगारे हजार बनिये जात रहे, हर महीना एक-दू हजार भेजियो देतरहलन। एहीतरे तीन साल बीत गइल। खेदारू नगदे पइसा कमा लिहलें रहलन। सोचलें "अब घरे चले के चाहीं, आखिर बिअजियो त बढ़ते जाता। आ फूला! ऊ त हमके एको छनना बिसारत होइहन, हमके देखते केतना निहाल हो जइहें।"
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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