Re: प्रेम ... समय
एक फिलोसोफी है, हर सवाल का जवाब कुदरत के अंदर छुपा हुआ होता है। अगर आपके मन में वाकई कोई मसला है जो हल नहि हो रहा, आप कुदरत (पेड पौधे, फुल, सागर, नदी, बरसात, बादल, अग्नि आदी) के साथ उसे जोड कर, भंग कर के देखो। आपको समाधान जरूर मिलेगा। पुराने संत-मौला, साधु-मौलवी, लेखक-विचारक एसे ही लोगो को जीने की राह दिखाते है।
मेरे मतानुसार प्रेम सागर की तरह है। ईसमें ज्वार-भाटा आ सकता है। तुफान, सुनामी आ सकती है। यह कभी उपर उपर से जम कर बर्फ भी बन सकता है। यह करोडो-अरबो जीव-जंतु का पोषक है और यह पुरे शहेर के शहेर भी डुबो सकता है।
लेकिन यह कभी सुखता नही है।
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