Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
खलील जिब्रान
प्रेम अपने आपको सम्पूर्ण करने के सिवा और कुछ नहीं चाहता. यदि तुम प्रेम करो और तुम्हारे हृदय में भावनाएं उठें तो वे यह होनी चाहियें –
“मैं द्रवित हो सकूँ और एक बहते हुए झरने की तरह रात्रि को सुमधुर गीत से भर सकूँ. अत्यंत कोमलता की वेदना को अनुभव कर साकुं. अपने प्रेम की अनुभूति से मैं घायल हो सकूँ. अपनी इच्छा से और हँसते हँसते मैं अपना रक्त-दान कर सकूँ.
पंख फैलाता हुआ हृदय ले कर मैं प्रभात वेला में जाग सकूँ तथा एक और प्रेममय दिन पाने के लिए धन्यवाद दे सकूँ. दोपहर को विश्राम कर सकूँ और प्रेम के परम आनंद में विलीन हो सकूँ. दिन ढलने पर कृतज्ञताभरा हृदय ले कर घर लौट सकूँ. और फिर रात्रि में प्रियतम के लिए प्रार्थना और होठों पर उसकी प्रशंसा के गीत लेकर सो सकूँ.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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