Re: इधर-उधर से
हे ईश्वर
विष्णु नागर के लेख से साभार
बेइमानों, चोरों, डाकुओं, लफंगों, घोटालेबाजों, रिश्वतखोरों, दलालों, साम्प्रदायिकों और जातिवादियों को कई जगह चुनाव में खड़ा होते देख ईश्वर इतने परेशान हो गये कि एक पूरी रात तो उन्हें नींद ही नहीं आई. उनका ब्लड प्रेशर इतना बढ़ गया कि वे खुद घबराहट में ‘हे ईश्वर, हे ईश्वर’ पुकारने लगे.
लेकिन अगले दिन उनकी हालत सुधरी और उन्होंने निश्चय किया कि वे स्थिति का मुकाबला करके रहेंगे. बहुत ठंडे दिमाग से सोचने पर उन्होंने पाया कि उसका सर्वोत्तम उपाय यही है कि वे स्वयं चुनाव में खड़े हो जाएं तो शरम तथा डर के मारे ये लोग खुद ही बैठ जायेंगे और ‘स्वर्गादपि गरीयसी’ भारत में लोकतंत्र की रक्षा हो जायेगी.
तो ईश्वर चुनाव में खड़े हो गए मगर कोई लफंगा नहीं बैठा. वे पूरे एक दिन खड़े रहे मगर कोई घोटालेबाज नहीं बैठा. वे दो दिन तक खड़े रहे मगर कोई दलाल नहीं बैठा. वे चार दिन और चार रात खड़े रहे मगर बैठना तो दूर किसी चोर ने उनकी तरफ झांककर भी नहीं देखा. किसी बेईमान ने नहीं कहा, प्रभो, अब आप बैठ जाइए.
अंत में ईश्वर धड़ाम से जमीन पर गिर गए और होश आया तो अस्पताल में थे. वे सब चुनाव जीत गए, जिनसे भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के लिये ईश्वर चुनाव में खड़े हुए थे. यहां तक कि उनकी जीत की खुशी में इनका एक समर्थक अस्पताल के पलंग पर लेटे ईश्वर के मुंह में लड्डू ठूंस गया था.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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