Re: प्रेम ... समय
प्रेम ही ईश्वर है और ईश्वर ही प्रेम है.प्रेम कोरा शब्द नहीं अनुभूति का नाम है,दुनिया की सर्वोत्तम अनुभूति का.कोई सरकार प्रेम करने पर प्रतिबन्ध लगा दे इससे बड़ा अत्याचार कोई हो ही नहीं सकता.ऐसा सिर्फ रोम में संभव है,भारत में नहीं.भारत में तो प्रेम को ही विद्या माना गया है.कबीर कहते हैं कि जिसने सबसे प्रेम करना सीख लिया वही पंडित है.सबके साथ अनुराग,सबके साथ प्रेम तभी संभव है जब या तो सबमें ईश्वर नजर आने लगे या फ़िर सबमें प्रेमी अथवा प्रेमिका दिखाई देने लगे.इसमें भी पहली अवस्था उत्तम है क्योंकि यहाँ पिटने का भय नहीं,दूसरी अवस्था में सिर्फ पिटने की ही सम्भावना है,प्रेम तो मिलने से रहा.
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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