Re: प्रेम ... समय
सबमें ईश्वर है.सब उसी के अंश हैं.फ़िर घृणा क्यों और किससे?इसलिए दुनिया में अगर कुछ करनीय है तो वह है सिर्फ और सिर्फ प्रेम और कुछ भी नहीं.लेकिन ऐसा तभी संभव है जब कोई व्यक्ति ईश्वर में स्थित हो जाए.फ़िर तो जित देखूं तित तूं वाली अवस्था हो जाती है.ऐसा व्यक्ति किसी पर नाराज नहीं हो सकता,कुपित नहीं हो सकता,क्रोधित नहीं हो सकता.वह मन के हाथों बेमोल बिक चुका होता है;बाध्य हो जाता है.ऐसा व्यक्ति इस दुनिया में सिर्फ एक ही काम कर सकता है और वह है प्रेम.
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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