Re: प्रेम ... समय
पुरुष और स्त्री दुनिया को चलानेवाले दो पहिए हैं.जबतक दोनों अलग-अलग हैं दुनिया की गाड़ी नहीं चल सकती,ठहर जाएगी;सबकुछ समाप्त हो जाएगा.सुनता हूँ कि सबके लिए कहीं-न-कहीं कोई-न-कोई है जो तत्काल अज्ञात है,अनजाना है.लेकिन भविष्य में वही उसके लिए सबकुछ न सही बहुत-कुछ हो जाएगा;क्योंकि वही प्रेम का सबसे सघन साक्षात् प्रतिरूप बनकर उसके जीवन में आएगा.लेकिन क्या यह प्रेम सिर्फ सांसारिक प्रेम होगा,शारीरिक होगा या यह प्रेम ईश्वरीय प्रेम की ऊंचाइयों को भले ही प्राप्त कर न पाए उसके निकट पहुंचेगा.मैं आदर्शवादी हूँ.मुझे सपनों में जीने की आदत है.मैं रोज कल्पना करता हूँ कि मैं अपनी अर्द्धांगिनी से बेईन्तहा मुहब्बत करता हूँ और हमारे प्रेम ने ईश्के मजाजी से ईश्के हकीकी तक का सफ़र तय कर लिया है.हमारे प्रेम ने उन्हीं ऊंचाईयों को हासिल कर लिया है जो कभी उसने राम और सीता के मध्य प्राप्त की थी.लेकिन मैं नहीं जानता हूँ उसका रंग-रूप,नाम और पता.इस समय वह कहाँ है और क्या कर रही है सबकुछ अनिश्चित भविष्य की धुंध में है..मैं उसकी पुकार सुन रहा हूँ लेकिन जान नहीं रहा कि वह कौन है और कहाँ है.वह भी इसी तरह मेरे दिल की आवाज को कहीं गुमसुम बैठी सुन रही है और व्याकुल है आवाज के स्रोत को जानने के लिए.मगर कहाँ,रहस्य है और तब तक यह रहस्य बना रहेगा जब तक भविष्य वर्तमान नहीं बन जाता.
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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