Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
[QUOTE=rajnish manga;540898][size=4]ठीक है ये दर्द तुमने ही दिया मुझको
पर तुम्हें मैं दर्द का कारण न मानूं तो
दे रहे हो तुम खुले बाजार का नारा
मैं तुम्हारी बात जन-गण-मन न मानूं तो
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
कैसे भीतर जाऊं मै
द्बारपाल भय दिखलाते हैं,
कुछ ही जन जाने पाते हैं
तेरी विभव कल्पना कर के,
उसके वर्णन से मन भर के,
भूल रहे हैं जन बाहर के
कैसे तुझे भुलाऊं मैं?................
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मैथिलीशरण गुप्त... Maithili Sharan Gupt
(गुणगान)
Last edited by soni pushpa; 20-01-2015 at 02:11 PM.
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