Re: व्यक्तित्व के शत्रु
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Originally Posted by soni pushpa
हमारे पूर्वज मनीषी कह गए हैं जो की बिलकुल सही बातें हैं.. और मेरे ख्याल से सब जानते भी हैं एइसे स्वाभाव के दुष्प्रभाव को ,किन्तु बदले की भावना, से त्राहित व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के इन शत्रु को भूलकर सामने वाले को प्रताड़ित करते रहते हैं कभी भाषा से कभी अपने अहंकार से रजनीश जी, किन्तु ये- ये नही समझते की इससे उनका ही नुकसान हो रहा होता है..
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मैं आपकी बात का समर्थन करता हूँ, पुष्पा सोनी जी. मैं सिर्फ इतना जोड़ना चाहता हूँ कि मानव स्वभाव की यही विडंबना है कि हम अहम् से ग्रस्त हो कर अपने-पराये का भेद मन में पाले रहते हैं और मनीषियों के वचनों को पढ़-सुन कर तालियाँ तो बजाते हैं लेकिन उन पर अमल नहीं करते.
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Originally Posted by dipu
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सूत्र पसंद करने के लिये आपका आभारी हूँ, दीपू जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 21-01-2015 at 07:43 PM.
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