चाणक्यगीरी
विद्योत्तमा के देश से आए गुप्तचरों ने आकर चाणक्य से कहा- ‘‘मौर्य हाईकमान की जय हो!’’
चाणक्य ने प्रश्नवाचक दृष्टि से गुप्तचरों की ओर देखा।
एक गुप्तचर ने कहा- ‘‘क्षमा करें, महामहिम। आज हम बहुत बुरी ख़बर लेकर आए हैं।
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘ख़बर सुनाने वाले के लिए कोई ख़बर अच्छी-बुरी नहीं होती, गुप्तचर। यह तो ख़बर सुनने वाले पर निर्भर करता है- ख़बर को अच्छा समझे या बुरा।’’
गुप्तचरों की समझ में कुछ नहीं आया।
चाणक्य ने स्पष्ट करते हुए आगे कहा- ‘‘किसी को अच्छी लगने वाली ख़बर दूसरे के लिए बुरी हो सकती है और किसी को बुरी लगने वाली ख़बर दूसरे के लिए अच्छी हो सकती है।’’
गुप्तचरों ने आश्चर्य से पूछा- ‘‘हम समझे नहीं, महामहिम। आपकी बातें गूढ़ होती हैं। सबकी समझ में नहीं आतीं।’’
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘नंदवंश के महाभोज में नंद राजा ने मेरी बेइज्जती की। मुझे बिना खाना खिलाए महाभोज से निर्वासित कर दिया। अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए मैंने नंद वंश का नाश करके मौर्य वंश की स्थापना की। नंद साम्राज्य का पतन नंद वंश और उनके समर्थकों के लिए बुरी ख़बर थी, किन्तु मौर्य वंश की स्थापना मौर्य वंश और उनके समर्थकों के लिए अच्छी ख़बर थी। इसलिए आप बेफि़क्र होकर ख़बर सुनाइए।’’
गुप्तचरों ने भयभीत स्वर में कहा- ‘‘महामहिम, विद्योत्तमा के राजमहल के बाहर सूचनापट्ट पर बहुत बुरी ख़बर लिखी है। कहते बहुत डर लग रहा है।’’ (क्रमशः)
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