Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य अत्यधिक तन्मयता के साथ मौर्य सम्राट के लिए ‘चाणक्य नीति’ और ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ लिखने में व्यस्त थे। उसी समय गुप्तचरों ने आकर बताया- ‘‘महामहिम, पक्की ख़बर है- इस बार विद्योत्तमा की सहेली और सेनापति अजूबी नाचने-गाने वालों के भेष में हमारे देश में आ गई है और नाचते-गाते हुए राजमहल की ओर बढ़ रही है। गिरफ़्तारी का आदेश करिए।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘गिरफ़्तारी की कोई ज़रुरत नहीं। आने दो अजूबी को। नाचने-गाने वालों की भेष में आई है तो ज़रूर कोई विशेष बात होगी। कौन सा गीत गा रही है अजूबी?’’
गुप्तचरों ने कहा- ‘‘आप खुद सुन लीजिए, महामहिम। अब तो नाचने-गाने की आवाज़ यहाँ तक आ रही है। लगता है- अजूबी राजमहल नहीं, आपके निवास-स्थान की ओर ही आ रही है।’’
चाणक्य ने कान लगाकर गीत का बोल सुना और ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए कहा- ‘‘अजूबी तो ‘ये कहानी, बहुत पुरानी। आज होगी कहानी ख़त्म, घर-घर में खूब मनेगा जश्न।’ गा रही है। ऐसा प्रतीत होता है- विद्योत्तमा ने अजूबी को मेरी कहानी खत्म करने के लिए नियुक्त किया है। लगता है- ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ और ‘चाणक्य नीति’ अधूरी रह जाएगी, पूरा न कर पाऊँगा।’’
उसी समय अजूबी नाचने-गाने वालों के समूह के साथ वहाँ पर आ गई और चाणक्य से बोली- ‘‘मेरा नाम मधुबाला है। हम आपको अपना नाच-गाना दिखाना चाहते हैं। आदेश करिए।’’
चाणक्य ने मरी हुई आवाज़ में अजूबी से कहा- ‘‘इतना ख़राब गीत का बोल मुझे पसन्द नहीं। नाच-गाने में मरने-मारने की बात अच्छी लगती है क्या? कोई अच्छा सा गीत सुनाओ, मधुबाला।’’
अजूबी ने नाचते हुए दूसरा गीत गाना शुरू किया- ‘‘मैं लड़की सीधी-सादी। लगती कितनी भोली-भाली। नाम है मेरा मधुबाला। मेरा चेहरा कितना भोला-भाला।’’
चाणक्य की जान में जान आई- अजूबी ने तो अच्छे बच्चों की तरह तुरन्त दूसरा गीत सुनाना शुरू कर दिया। चाणक्य ने अजूबी की प्रसंशा करते हुए कहा- ‘‘वाह-वाह... क्या सुन्दर गीत है, क्या सुन्दर नृत्य है! किन्तु अफ़सोस, मौर्य देश के खजाने में इतना धन नहीं जिससे तुम्हारी नाचने-गाने की कला को पुरस्कृत किया जा सके। मैं क्षमा चाहता हूँ, मधुबाला।’’
मधुबाला के भेष में आई अजूबी ने मुस्कुराते हुए कहा- ''ऐसा न कहिये। आप दो-चार गीत और सुनिए।''
ऐसा कहकर अजूबी ने नृत्य के साथ चार गीत और सुनाया और अन्तिम गीत के अन्त में चुपके से चाणक्य को विद्योत्तमा के देश का अपना वह राजकीय चिह्न दिखा दिया जिससे चाणक्य अच्छी तरह से समझ सके कि वह अजूबी ही है। चाणक्य ने चैन की साँस लेते हुए सोचा- 'अच्छा, तो यह बात है। अजूबी लड़ने नहीं, दोस्ती करने आई है!'
|