Re: तर्क-वितर्क
अब तो अब आपकी समझ में यह बात तो आ ही गई होगी कि तर्क-वितर्क द्वारा दोस्ती भी बड़ी आसानी से दुश्मनी में तब्दील हो सकती है। यही कारण है- हम तर्क-वितर्क करने के नाम पर बुरी तरह घबड़ाकर इस प्रकार नौ दो ग्यारह होते हैं, जैसे गधे के सिर से सींग! भगवान ने इस धरती पर दोस्त बनाने के लिए भेजा है, दुश्मन बनाने के लिए नहीं। एक बात हमेशा याद रखिए- आज के युग में 'दे दे प्यार दे दे हमें प्यार दे' कहकर बड़े-बड़े आँसूं गिराने वाली आपकी प्रेयसी भी आपकी बहुत छोटी सी गलती भी माफ़ करने के लिए तैयार नहीं होती। इन परिस्थितियों में दूसरे आपके तर्क-वितर्क पर कभी क्षमा करने वाले नहीं हैं! इस सन्दर्भ में एक अद्वितीय उद्धरण भी है- '...अन्त में लोग वही सुनते हैं जो वे सुनना चाहते हैं' और यह उद्धरण मेरा नहीं, किसी और का लिखा है!
क्या आप अब भी तर्क-वितर्क की आवश्यकता महसूस करते हैं? कृपया अपनी टिप्पणी दें!
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