Re: आक्षेप का पटाक्षेप
आक्षेप लगाने वालों ने तो तुलसीदास के रामचरितमानस पर भी लगाया है। सुन्दरकाण्ड की चौपाई 'ढोल गवांर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।' सदा से विवादास्पद रही है। चौपाई के पक्ष में तर्क देने वाले टीकाकारों ने 'ताड़ना' का अर्थ बदलकर 'शिक्षा' कर दिया और चौपाई की व्याख्या करते हुए लिखा- 'ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं'। वहीं पर चौपाई के पक्ष में तर्क देने वाले कुछ लोगों ने यहाँ तक कह दिया कि चौपाई में कही हुई बात विप्र रूप में आए हुए समुद्र ने कही है और समुद्र कोई ज्ञानी-महात्मा नहीं था जो एकदम सटीक बात कहता। अतः इसमें गलती महामूर्ख समुद्र की है। तुलसीदास ने तो सिर्फ़ समुद्र के विचार लिखे हैं, अपने नहीं। अतः इसमें तुलसीदास की कोई गलती नहीं है। स्पष्ट है- किसी को कोई पसन्द हो तो उसके पक्ष में हज़ार तर्क दिए जा सकते हैं और नापसन्द हो तो उसके विपक्ष में हज़ार तर्क दिए जा सकते हैं। यह कटु सत्य है कि '…अन्त में लोग वही सुनते हैं जो वे सुनना चाहते हैं', अतः सूत्रों पर लगे आक्षेप का पटाक्षेप करते हुए 'सूत्रों का विवादास्पद अंश अथवा सम्पूर्ण सूत्र हटाने के अनुरोध' के साथ गेंद रजनीश जी के पाले में फेंक दी गई है। हास्य-व्यंग्य में निहित एक राज़ की बात भी बताते चलें। हास्य-व्यंग्य में किसी न किसी की भावनाएँ थोड़ा बहुत तो आहत होती ही हैं। विवाद तो पी.के. मूवी पर भी उठा था।
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