27-02-2015, 02:25 PM
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
खलील जिब्रान
नर्तकी
एक बार बिरकासा के राजा के दरबार में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए एक नर्तकी उपस्थित हुयी. उसके साथ उसके संगीतकारों की टोली भी थी. राजा के सामने उसने बांसुरी, वीणा और इकतारा आदि की लय पर नृत्य प्रस्तुत किये.
उसने जो नृत्य प्रस्तुत किये उनमे अग्नि-नृत्य, खंग-नृत्य और त्रिशूल नृत्य शामिल थे. अंत में उसने नक्षत्र-नृत्य व वायु में झूमते हुए फूलों का नृत्य प्रस्तुत किया.
नृत्य प्रदर्शन के बाद उसने राजा के सामने जा कर उसका अभिवादन किया.
राजा ने उसे अपने निकट बुला कर कहा, ”हे सुन्दरी ! तुम्हारे नृत्य ने हमारी रूह को तृप्त कर दिया है. यह बताओ कि तुमने ताल, लय और स्वर का समन्वय किस प्रकार सिद्ध किया है.”
नर्तकी ने राजा के सामने झुकते हुए उत्तर दिया, “हे शक्तिशाली, प्रजावत्सल महाराज, आपके प्रश्न का उत्तर तो मैं नहीं जानती परन्तु इतना अवश्य कहना चाहती हूँ कि दार्शनिक की आत्मा उसके मस्तिष्क में, कवि की आत्मा उसके हृदय में, गायक की आत्मा उसके गले में बसती है लेकिन नर्तकी की आत्मा उसके शरीर के अंग-प्रत्यंग में बसती है.”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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