एक ग़ज़ल- कातिल अपना घर...
ग़ज़ल-
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पल पल कितना डर लगता है
कातिल अपना घर लगता है
डर के रँग में रँग जाए तो
क्या कोई सुन्दर लगता है
धरती ने ऐसे झकझोरा
हीरा भी पत्थर लगता है
हम भी मर जायेंगे शायद
रोजाना अक्सर लगता है
बाहर है यह साया कैसा
मौत खड़ी अन्दर लगता है
उम्मीदों का पंछी घायल
देखें कैसै पर लगता है
कैसे हम 'आकाश' रहेंगे
छूते सब खंजर लगता है
ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, जनपद- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश.
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