Quote:
Originally Posted by आकाश महेशपुरी
मुक्तक
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डरे बच्चे व बूढ़े और दहशत हम जवानों में
असंभव है कि सो पाएं दरकते इन मकानों में
धरा ने यूँ है झकझोरा कलेजा मुँह को आ जाये
कि अब तो मौत ही दिखती यहाँ हर पल ठिकानों में
मुक्तक- आकाश महेशपुरी
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भूकंप की पृष्ठभूमि पर आपकी यथार्थ प्रतिक्रिया. अति सुंदर.