Re: तेरे रंग
बहुत सुंदर .... अद्वितीय. आपकी कविता वास्तव में गैर-मामूली कही जानी चाहिए. चाहे अनजाने में सही आपने समाज के उस तबके की भावनाओं या आक्रोश को व्यक्त किया है जो आर्थिक या सामाजिक तौर पर दबे-कुचले हैं, शोषित हैं और हाशिये पर रहने के लिए अभिशप्त हैं. क्या कविता की अंतिम चार पंक्तियाँ इनकी आत्मा की पुकार प्रतीत नहीं होती?
एक अर्ज मेरी भी सुन लो,
बनाओ अगली दुनिया जब
बनाना तो सिर्फ पशु पंखी बनाना
पर भूल से इंसा न बनाना तुम ..
उक्त कविता के लिये मेरा धन्यवाद स्वीकार करें, बहन.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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