Re: saccha prem
यहाँ मेरा कुछ मतभेद है. हमने सुना भी है और पढ़ा भी है कि 'सत्य ही ईश्वर है' या 'ईश्वर ही सत्य है'. ऐसी स्थिति में सत्य मीठा और कर्णप्रिय ही होना चाहिये, उसके अतिरिक्त और कुछ नहीं. लेकिन अक्सर यह भी सुनाई दे जाता है कि 'सत्य कड़वा होता है'. यह विरोधाभास क्यों? इसी भांति विशुद्ध प्रेम आजकल rare हो गया है. प्रेम में मिलावट होने पर यह प्रेम 'झूठा' भी हो सकता है. अतः प्रेम के परस्पर विपरीत रूपों का ज़िक्र करते हुए यदि हम 'सच्चा प्रेम' और 'झूठा प्रेम' कहते हैं तो बुरा क्या है? उसके अलावा, सच्चा कहने से प्रेम की तीव्रता का आभास होता है.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|