Re: ग़ज़ल: मन तो भिखारी है
[QUOTE=rajnish manga;191897][indent][indent]मन की कमाई से ये दुनियादारी है.
नर तन तो पा लिया मन देनदारी है.
आकुल है क्या करे भूखा है नेह का,
छोड़ो भी मांगने दो मन तो भिखारी है.
ईस रचना का एक एक शेर सौ सवाशेर के बराबर है! अत्यंत तीव्र और निखालस।
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