Re: इधर-उधर से
फलों का राजा आम
आजकल आम का सीज़न अपने शबाब पर है. सोचा कि क्यों न इस बार आम के विषय में चर्चा की जाये. तो शुरू करें. बचपन से ले कर 64 वर्ष की आयु तक मेरा वजूद एक आम आदमी का रहा है. आर्थिक-सामाजिक दृष्टि से देखा जाये तो भी मैं एक मिडिल क्लास आम आदमी हूँ और आमों की दृष्टि से देखा जाये तो भी मेरी पहचान एक आम आदमी की ही रही है. जो व्यक्ति अधिक शराब पीता है उसके बारे में अक्सर कहा जाता है कि इसकी नसों में रक्त की जगह शराब दौड़ रही है. इसी प्रकार पिछले साठ वर्षों में मैंने इतने आम खाए हैं कि मैं कह सकता हूँ कि मेरी नसों में आम बह रहा है. वैसे देखा जाये तो आम तौर पर हर भारतवासी आमों पर जान छिड़कता है. और क्यों न हो? आम आदमियों की तरह आम भी देश के हर भाग में उगाया जाता है और यदि उगाया नहीं जाता तो पाया, खरीदा, बेचा और खाया जरुर जाता है. मेरे कहने का आशय यह है कि हर व्यक्ति स्वादानुसार अथवा अपनी हैसियत के अनुसार सब्जी मंडी, फ्रूट मंडी, रेहड़ी या फर्शिया दुकानों से अपनी पसंद का आम खरीद कर खा सकता है.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|