Re: पता नहीं बेटा
पता नहीं बेटा
पिता जी!
हाँ, बेटा?
मानसून देश के कई इलाकों में पहुँच गया है. देश के बहुत से इलाकों में बाढ़ की स्थिति बन गई है.
सो तो है, बेटा!
अभी तो यह शुरूआत है, पिता जी. पूरे मानसून में क्या होगा? सरकार कुछ करती क्यों नहीं?
सरकार तो, बेटा, आज़ादी के बाद से ही जी तोड़ कोशिशें कर रही है. लेकिन ऊपर वाले के आगे इनका जोर नहीं चलता.
पिता जी! जो भी समस्या नियंत्रण से बाहर हो जाती है, उसके बारे में नेता लोग यह कह देते हैं कि उपर वाले के आगे सब बेबस हैं.
प्राकृतिक आपदा हद से बाहर चली जाये तो ऐसा ही कहा जाता है, बेटा?
लेकिन हमारे यहाँ तो हर आपदा शुरूआत में ही हद से बाहर हो जाती है, जैसे मुंबई में मानसून की पहली बारिश के साथ ही ट्रैफिक जाम, जल भराव, लोकल ट्रेन बंद, स्कूल बंद, बिजली का करंट लगने से मौतें, जन-जीवन अस्त-व्यस्त आदि परेशानियाँ शुरू हो जाती हैं.
हर शहर में यही दृश्य दिखाई देता है, बेटा!
जब सरकारें कुछ कर ही नहीं सकतीं तो सरकारों की जरुरत क्या है, पिता जी???
पता नहीं, बेटा !!!
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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