क्या हार जीवन का अंत है?
क्या हार जीवन का अंत है?
(इन्टरनेट से)
क्या हार जीवन का अंत है? क्या हार के बाद उदासी, नाराज़गी, गुस्सा, अकेलापन और आत्महत्या यही बाकी रह जाता है?
मुझे तो ऐसा नहीं लगता है, मैं सोचता हूँ कि हार एक नई राह की शुरुआत होती है. जिसने भी यह जाना, दुनिया ने उसे माना है. सफल व्यक्ति हार से नहीं जीवन में रूक जाने से डरते हैं. एक नदी की तरह बहना ही तो जीवन है, नदी का पानी कहीं रूक जाता है तो कुछ दिनों बाद ही उसकी पवित्रता खत्म होने लगती है. आज के इस प्रतिस्पर्धा के युग में अगर हर किसी को आसानी से सफलता मिलती रहे, तो इस दुनिया मे सफलता का महत्व और आनंद पूरी तरह समाप्त हो जायेगा.
किसी काम को करने से पहले दिल में एक डर होता है. यह डर नाकामयाबी का भी हो सकता है और हार का भी. यही डर अधिकतर लोगों को नई राह पर चलने से रोकता भी है. अगर आप अपनी मंजिल से अज्ञात हैं और आपके रास्ते भी अनजान हैं, तो इसमें डरने की कोई बात नहीं है. ऐसा तो अक्सर बहुत से लोगों के साथ होता है.
बस आपको जरूरत है आत्मविश्वास और संयम की. वैसे हार भी एक मीठा अनुभव ही तो है, जो आपके भविष्य की छोटी जीत की खुशी को दोगुना कर देती है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 09-07-2015 at 06:19 PM.
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